स्कॉटलैंड के उत्तर में 321 किलोमीटर की दूरी पर फअरो आईलैंड्स से आई इन तस्वीरों में कुछ भी नया नहीं है. हर साल मार डाली गईं व्हेल्स की ये तस्वीरें जमकर वायरल होती हैं. व्हेल्स को मारने के पीछे सन् 1584 से चली आ रही एक परंपरा है. इस परंपरा को जिस दिन निभाया जाता है उस दिन समंदर का नीला पानी एकदम लाल हो जाता है.

शिकार करने की ये पंरपरा फअरो नाम के इस द्वीप पर कानूनी है. महज़ 1400 स्क्वेयर किलोमीटर में फैले और 50 हजार की आबादी वाले इस द्वीप के लोगों ने इस साल भी करीब 800 व्हेल्स और डॉलफिन्स को मार डाला. फअरो डेनमार्क का हिस्सा है लेकिन अलग देश के रूप में स्वायतत्ता प्राप्त हैं, लिहाज़ा ना तो डेनमार्क और ना ही यूरोपियन यूनियन के नियम-कानून यहां लागू होते हैं. इस द्वीप के लोग पायलट व्हेल्स के मांस और चर्बी को राष्ट्रीय भोजन की तरह इस्तेमाल करते आए हैं. ये भी तथ्य है कि पायलट व्हेल विलुप्तप्राय मछलियों में नहीं आती हैं.

मछुआरे अपनी नाव के साथ समुद्र में उतरते हैं और व्हेल के झुंड को खदेड़कर तट तक लाते हैं. तट पर आने के बाद पास खड़े लोग नुकीले हुक को व्हेल के उस छिद्र में फंसाते हैं जिससे वो सांस लेती है. इन व्हेल्स को लोग खींचकर पानी से बाहर लाते हैं और फिर हथियार से उसके मेरूदंड पर हमला करते हैं. व्हेल्स के दिमाग तक खून की सप्लाई बंद होने पर सेकेंडों में उनकी मौत हो जाती है. जब ये सब चल रहा होता है तब सभी इसमें हिस्सा लेते हैं. महिलाएं और बच्चे भी समुद्र तट पर चले आते हैं. व्हेल्स के पूरे समूह को दस मिनट के भीतर मार डाला जाता है.

व्हेल्स पर हिंसा की इस परंपरा के खिलाफ कई संगठनों ने रोक की मांग रखी है मगर सब बेकार ही गया. कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इस मामले में काफी तल्ख टिप्पणी भी की हैं और कहा कि इस द्वीप के लोगों को मध्यकाल से बाहर निकल आना चाहिए.